विधा सोंनेट, शकुंतला

Image
निषाद  कन्या    सम  लौहावर्णी    देह    सुडौल   दिव्यांगनी राजपुत्री   सम    दर्पित  काया    ज्यों   मेघ  मंडित   तरंगनी । कठोर हृदया  धरा मध्य  इक करुण कुण्डिका ज्यों छुपी हुई गहन  श्यामल  विमल  नीर    तरौच्छादित   झील  ढकी  हुई । मुखचन्द्र पर  दृग पट्टिकाएं   हैं बन्द चाप  दीर्घ  संधान किये किसलय  शय्या सोये मधुप  ज्यों मकरन्द  मदिरा पान किये । अहा तरुणी की आरुणि आभा मोहित मोर मृग खग शतदल ज्यों देव प्रतिमा निरिख निरिख  आनन्द पाते सन्तन मन तल । वन  कुमारी  दुष्यत  ब्याहता    गन्धर्व  प्रेम   कण्ठ  हार  भी चुन  रही  पुष्प  कलिकाएं   किये  कुन्तल  सुमन  श्रृंगार  भी । प्रियतम शशि  रख  हृदय व्योम  दीप्त हुई शकुंतला विभावरी आ...

मेरी नादानी

खता हुई, ये हरकत बचकानी थी मेरी
तेरा पता पूछना 'चाँद' नादानी थी मेरी।
तू रोज वक्त से आता जाता रहा मुंडेर
आईने मेँ तुझे ढूँढना बेईमानी थी मेरी।
मंजिल सही थी राह ही गलत चले हम
दोषी तुझे कहना गलत बयानी थी मेरी।
आँगन में खड़े नीम की छाया थी तुम
बबूल के तीखे काँटों सी जवानी थी मेरी।
हजारों मील चले तुम उल्फ़त की राह
और कोस भर की बस रवानी थी मेरी।
तेरेे ही सदके किनारे मिल गए हमको
टूटी कश्ती शौकिया बादबानी थी मेरी।
टूट गया अपने ही गुनाहों से 'विनोदी'
यूँ तो उठा सर चलना निशानी थी मेरी।।
:- ⇨ रमेश विनोदी

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

नअश्कों से भीख

विधा सोंनेट, शकुंतला