विधा सोंनेट, शकुंतला
निषाद कन्या सम लौहावर्णी देह सुडौल दिव्यांगनी
राजपुत्री सम दर्पित काया ज्यों मेघ मंडित तरंगनी ।
कठोर हृदया धरा मध्य इक करुण कुण्डिका ज्यों छुपी हुई
गहन श्यामल विमल नीर तरौच्छादित झील ढकी हुई ।
राजपुत्री सम दर्पित काया ज्यों मेघ मंडित तरंगनी ।
कठोर हृदया धरा मध्य इक करुण कुण्डिका ज्यों छुपी हुई
गहन श्यामल विमल नीर तरौच्छादित झील ढकी हुई ।
मुखचन्द्र पर दृग पट्टिकाएं हैं बन्द चाप दीर्घ संधान किये
किसलय शय्या सोये मधुप ज्यों मकरन्द मदिरा पान किये ।
अहा तरुणी की आरुणि आभा मोहित मोर मृग खग शतदल
ज्यों देव प्रतिमा निरिख निरिख आनन्द पाते सन्तन मन तल ।
किसलय शय्या सोये मधुप ज्यों मकरन्द मदिरा पान किये ।
अहा तरुणी की आरुणि आभा मोहित मोर मृग खग शतदल
ज्यों देव प्रतिमा निरिख निरिख आनन्द पाते सन्तन मन तल ।
वन कुमारी दुष्यत ब्याहता गन्धर्व प्रेम कण्ठ हार भी
चुन रही पुष्प कलिकाएं किये कुन्तल सुमन श्रृंगार भी ।
प्रियतम शशि रख हृदय व्योम दीप्त हुई शकुंतला विभावरी
आँचल कोने बंधी मुद्रिका फिर-फिर खोल रही बावरी ।
चुन रही पुष्प कलिकाएं किये कुन्तल सुमन श्रृंगार भी ।
प्रियतम शशि रख हृदय व्योम दीप्त हुई शकुंतला विभावरी
आँचल कोने बंधी मुद्रिका फिर-फिर खोल रही बावरी ।
पर प्रेम पात्र से सुधा तिक्त पीकर हृदय कुछ हारा हुआ
विकल चपल है अन्तःकरण मन दिनमान अंधियारा हुआ ।
विकल चपल है अन्तःकरण मन दिनमान अंधियारा हुआ ।
Comments
Post a Comment